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March 21, 2025 - BY Admin

Sheetala ashtami: a sacred festival for health and prosperity blessed by goddess Sheetala

शीतला अष्टमी: महत्व, व्रत विधि, कथा और लाभ

शीतला अष्टमी एक महत्वपूर्ण हिंदू पर्व है, जिसे चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। इसे "बसोड़ा पर्व" के नाम से भी जाना जाता है। यह पर्व विशेष रूप से माता शीतला को समर्पित होता है, जो संक्रामक रोगों, विशेष रूप से चेचक, खसरा और त्वचा रोगों से बचाने वाली देवी मानी जाती हैं। इस दिन माता शीतला की पूजा करने और व्रत रखने से परिवार में रोगों से सुरक्षा और समृद्धि बनी रहती है।


शीतला अष्टमी का महत्व

हिंदू धर्म में शीतला माता को स्वास्थ्य की देवी माना जाता है। पुराणों के अनुसार, जब धरती पर संक्रामक बीमारियाँ फैलने लगीं, तो माता शीतला ने अपनी शक्ति से लोगों की रक्षा की। उनकी उपासना करने से शरीर और मन की शुद्धि होती है। खासकर बच्चों और बुजुर्गों के लिए यह पर्व बहुत शुभ माना जाता है, क्योंकि यह रोगों को दूर करने में सहायक होता है।

इस दिन व्रत रखने और पूजा करने से व्यक्ति रोग-मुक्त, मानसिक रूप से शांत और सुखी रहता है। शीतला माता की कृपा से परिवार में किसी भी प्रकार की बीमारी, क्लेश और अशांति नहीं होती।


शीतला अष्टमी व्रत की कथा

पहली कथा: रानी की गलती और महामारी

पुराणों के अनुसार, एक बार एक राजा की रानी को शीतला माता की पूजा करने का आदेश मिला था, लेकिन उसने इस आदेश की अवहेलना कर दी और अष्टमी के दिन गरम भोजन बनाया। माता शीतला इससे नाराज हो गईं और पूरे राज्य में महामारी फैला दी। राजा और रानी ने बहुत प्रयास किए लेकिन महामारी समाप्त नहीं हुई।

तब एक संत ने उन्हें माता शीतला की पूजा करने और ठंडा भोजन ग्रहण करने का सुझाव दिया। जब रानी ने माता की विधिवत पूजा की और बसोड़ा पर्व मनाया, तो महामारी समाप्त हो गई और पूरा राज्य स्वस्थ हो गया। तभी से यह परंपरा चली आ रही है कि इस दिन ठंडा (बासी) भोजन किया जाता है।

दूसरी कथा: माता शीतला का वरदान

एक अन्य कथा के अनुसार, एक गांव में माता शीतला वृद्ध महिला के रूप में गईं और भोजन मांगा। कुछ लोगों ने उनका आदर किया और ठंडा भोजन दिया, जबकि कुछ ने उनका अपमान किया। जिन लोगों ने उनका आदर किया, वे बीमारियों से बचे रहे और जिन लोगों ने उनका अपमान किया, वे बीमार पड़ गए।


शीतला अष्टमी व्रत की विधि

1. व्रत का संकल्प

  • शीतला अष्टमी के दिन प्रातःकाल स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  • माता शीतला का ध्यान करें और व्रत का संकल्प लें।

2. पूर्व रात्रि का भोजन

  • इस पर्व की खास परंपरा यह है कि एक दिन पहले (सप्तमी के दिन) ताजा भोजन बनाया जाता है और इसे ठंडा करके अगले दिन खाया जाता है।
  • इस भोजन को माता शीतला को भोग लगाने के बाद ही ग्रहण किया जाता है।

3. शीतला माता की पूजा

  • एक स्वच्छ स्थान पर माता शीतला की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।
  • जल, रोली, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप और नैवेद्य अर्पित करें।
  • माता शीतला को ठंडा भोजन, दही, मीठी रोटी, चीनी और चावल का भोग लगाएं।
  • विशेष ध्यान: इस दिन चूल्हा जलाना वर्जित होता है।

4. मंत्र जाप और कथा पाठ

  • माता शीतला के भजन और स्तोत्र का पाठ करें।
  • शीतला माता की कथा सुनें और प्रसाद वितरण करें।

5. व्रत समापन और प्रसाद ग्रहण

  • संध्या के समय माता की आरती करें।
  • व्रत समापन के बाद प्रसाद स्वरूप ठंडा भोजन ग्रहण करें।

शीतला अष्टमी के विशेष लाभ

रोगों से सुरक्षा: माता शीतला की पूजा करने से संक्रामक रोगों से बचाव होता है।
शांति और समृद्धि: परिवार में सुख-शांति बनी रहती है और नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है।
बच्चों की रक्षा: यह पर्व विशेष रूप से बच्चों को बीमारियों से बचाने के लिए किया जाता है।
घर में कलह समाप्त: माता की कृपा से घर में प्रेम और सौहार्द बना रहता है।
भाग्य वृद्धि: व्रत करने से सौभाग्य और स्वास्थ्य में वृद्धि होती है।


शीतला माता के चमत्कारी मंत्र

शीतला माता की कृपा पाने के लिए निम्नलिखित मंत्रों का जाप करें:

🔹 शीतला माता का मुख्य मंत्र:
👉 "ॐ ह्रीं शीतलायै नमः"
इस मंत्र का जप करने से माता शीघ्र प्रसन्न होती हैं और सभी संकट दूर होते हैं।

🔹 रोगों से बचाव के लिए विशेष मंत्र:
👉 "ॐ शीतले पाप नाशिनि, विष्णु पत्नी नमोऽस्तुते। शीतलां देहि मे सौख्यं, सौभाग्यम आरोग्यम सर्वदा॥"
इस मंत्र का जाप करने से संक्रामक रोगों से सुरक्षा मिलती है।

🔹 आरोग्य और सुख-समृद्धि के लिए बीज मंत्र:
👉 "ॐ ऐं क्लीं शीतलायै नमः॥"
यह मंत्र रोगों को दूर करता है और घर में सुख-समृद्धि लाता है।


शीतला अष्टमी का वैज्ञानिक दृष्टिकोण

शीतला अष्टमी पर्व का केवल धार्मिक ही नहीं, बल्कि वैज्ञानिक आधार भी है

  • ठंडा (बासी) भोजन करने से पाचन तंत्र को आराम मिलता है और शरीर को आवश्यक ऊर्जा प्राप्त होती है।
  • यह पर्व स्वच्छता और स्वास्थ्य को बढ़ावा देता है, क्योंकि इस दिन सफाई और स्वच्छता का विशेष ध्यान रखा जाता है।
  • गर्मी के मौसम में संक्रमण बढ़ता है, इसलिए इस पर्व के माध्यम से संक्रमण और बीमारियों से बचाव के लिए जागरूकता फैलाई जाती है।

निष्कर्ष

शीतला अष्टमी केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि यह स्वास्थ्य, स्वच्छता और आध्यात्मिक शक्ति को जागृत करने का अवसर भी है। इस पर्व को मनाने से न केवल माता शीतला की कृपा प्राप्त होती है, बल्कि संक्रामक रोगों से भी रक्षा होती है। जो लोग इस व्रत को श्रद्धा और विश्वास के साथ करते हैं, उनके घर में सुख, समृद्धि और शांति बनी रहती है।

🙏 "जय माता शीतला!" 🙏