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March 16, 2025 - BY Admin

संत तुकाराम जी: जीवन, शिक्षाएँ और उनकी प्रासंगिकता Sant Tukaram Ji: Life, Teachings, and Their Relevance

🔹 संत तुकाराम जी का जीवन परिचय

1️⃣ परिचय

संत तुकाराम जी भारत के महान संत, कवि, समाज सुधारक और भक्ति आंदोलन के प्रमुख संतों में से एक थे। वे महाराष्ट्र के वारकरी संप्रदाय से जुड़े थे और भगवान विठोबा (विट्ठल) के अनन्य भक्त थे। उनकी अभंग (भक्ति गीत) रचनाएँ आज भी भक्ति साहित्य का अमूल्य हिस्सा हैं। उन्होंने अपने जीवन को भक्ति, सेवा, प्रेम और सामाजिक समानता के प्रचार में समर्पित कर दिया।

2️⃣ जन्म और प्रारंभिक जीवन

🗓 जन्म: 1608 ई. (कुछ मतों के अनुसार 1598 ई.)
📍 जन्म स्थान: देहू गाँव, पुणे, महाराष्ट्र, भारत

संत तुकाराम जी का जन्म मराठा कुल में हुआ था। उनका पूरा नाम तुकाराम मोरे था। उनका परिवार भगवान विट्ठल का उपासक था और उनके पूर्वज भी भक्ति मार्ग पर थे। उनके पिता का नाम बोल्होजी मोरे और माता का नाम कनकाई था। उनका बचपन धार्मिक माहौल में बीता, लेकिन किशोरावस्था में ही उनके माता-पिता का देहांत हो गया, जिससे उन पर परिवार की ज़िम्मेदारी आ गई।

3️⃣ संघर्ष और आध्यात्मिक जागृति

संत तुकाराम जी को बचपन में बहुत संघर्षों का सामना करना पड़ा। माता-पिता की मृत्यु के बाद, उन्होंने पारिवारिक व्यवसाय (कृषि और व्यापार) संभालने की कोशिश की, लेकिन कर्ज और अकाल की वजह से उन्हें भारी नुकसान हुआ।

🔹 आध्यात्मिक परिवर्तन

इन कठिनाइयों के दौरान उन्होंने सांसारिक मोह को त्याग दिया और भगवान विट्ठल की भक्ति में लीन हो गए। वे देहू के पास भामनथान पर्वत पर ध्यान करने लगे। यहीं पर उन्हें भगवद्भक्ति की गहरी अनुभूति हुई और वे पूर्ण रूप से संत बन गए।

4️⃣ संत तुकाराम जी की शिक्षाएँ

(1) सच्ची भक्ति का महत्व

🔹 "हरि का सुमिरन करो, वे तुम्हारे हृदय में हैं।"
✅ उन्होंने दिखावे की पूजा को अस्वीकार किया और मन से भगवान के प्रेम को सबसे श्रेष्ठ बताया।

(2) जाति-पाति और भेदभाव का विरोध

🔹 "भगवान के दरबार में सभी समान हैं।"
✅ उन्होंने जातिवाद, ऊँच-नीच के भेदभाव का विरोध किया और सभी को समानता का संदेश दिया।

(3) अहंकार और लोभ से बचाव

🔹 "धन से मन नहीं भरता, लेकिन हरि का नाम अमृत के समान है।"
✅ उन्होंने सिखाया कि धन और अहंकार का त्याग करके ही शांति और मुक्ति प्राप्त की जा सकती है।

(4) परिश्रम और सेवा

🔹 "कर्म ही पूजा है, आलस्य जीवन का नाश कर देता है।"
✅ उन्होंने निष्काम कर्म और सेवा को महत्वपूर्ण बताया।

5️⃣ अभंग रचनाएँ और योगदान

संत तुकाराम जी ने 4000 से अधिक अभंग (भक्ति गीत) रचे, जो मराठी भाषा में लिखे गए थे। उनकी कविताओं में भक्ति, प्रेम, समानता, और नैतिकता के संदेश हैं। उनकी रचनाएँ गुरु ग्रंथ साहिब में भी शामिल हैं।

6️⃣ संत तुकाराम जी की समाधि

🗓 समाधि: 1650 ई. (कुछ मतों के अनुसार 1649 ई.)
📍 स्थान: देहू, पुणे, महाराष्ट्र

ऐसा माना जाता है कि संत तुकाराम जी ने अपना भौतिक शरीर त्यागकर भगवान विट्ठल के धाम में प्रवेश किया। भक्तों के अनुसार, वे अपने शरीर सहित स्वर्ग चले गए, जिसे "सशरीर वैकुंठ गमन" कहा जाता है।

7️⃣ संत तुकाराम जी की शिक्षाओं की आज की प्रासंगिकता

सच्ची भक्ति – हमें दिखावे से दूर रहकर सच्चे मन से भगवान की भक्ति करनी चाहिए।
जात-पात और भेदभाव – हमें समाज में समानता और प्रेम को बढ़ावा देना चाहिए।
अहंकार और लोभ – धन, पद और अहंकार से बचकर विनम्रता अपनानी चाहिए।
परिश्रम और सेवा – सफलता के लिए परिश्रम और समाज सेवा को अपनाना चाहिए।

🔹 निष्कर्ष

संत तुकाराम जी का जीवन और उनकी शिक्षाएँ आध्यात्मिकता, भक्ति और समाज सुधार का संदेश देती हैं। यदि हम उनके विचारों को अपनाएँ, तो हमारा जीवन और समाज दोनों बेहतर हो सकते हैं।